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Showing posts from August, 2020

सार्थक अंक-पहचान-नियम

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सार्थक अंक - जैसा कि हमें ज्ञात है कि कोई भी मापन पूर्णतयः यथार्थ नहीं होता है अर्थात उसमें कुछ न कुछ त्रुटि अवश्य होती है | अतः मापन के परिणाम को इस प्रकार व्यक्त   करना चाहिए कि उसकी   परिशुद्धता स्पष्ट हो जाए | चुुँकि मापन के परिणामों को एक संख्यां के रूप में व्यक्त करते हैं जिसमे विश्वसनीय अंक तथा प्रथम अनिश्चित अंक भी सम्मिलित होता है |   अतः विश्वसनीय अंकों तथा पहले अनिश्चित अंकों को   संख्या   के सार्थक अंक कहा जाता है | दुसरे शब्दों में “ किसी माप के उन अंकों , जहाँ तक हम प्रमाणिक एवं यथार्थ जानकारी कर सकते हैं ,उसको सार्थक अंक कहते हैं |” अतःहम   यह कह सकते है कि सार्थक अंक किसी मापन की परिशुद्धता व्यक्त करते हैं | सार्थक अंक की पहचान – माना मापन के बाद किसी वस्तु की लम्बाई   345.8 c.m प्राप्त होती है | यदि इसमें सार्थक अंक ज्ञात करना हो तो इसमें चार सार्थक अंक है जिसमे से 3,4,5 विश्वसनीय (निश्चित ) अंक तथा   8   अनिश्चित अंक हैं | अतः मापन में इससे अधिक अंक लिखना परिशुद्धता के लिए अयोग्य होगा | सार्थक अंक ज्ञात करने के नियम –        सभी शून्येतर अंक सार्थक

Combination of errors (त्रुटियों का संयोजन)

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  त्रुटियों का संयोजन -    विभिन्न भौतिक राशियाँ भिन्न भिन्न राशियों से संयोजित होती हैं | अतः उनके बीच त्रुटियों का विश्लेषण करने के लिए त्रुटियों का संयोजन जानना आवश्यक है | इसके लिए हम निम्न कार्यविधियों का अनुसरण करते हैं |   ·        (a)किसी संकलन या व्यकलन की त्रुटि –   “जब दो राशियों को संकलित या व्यकलित किया जाता है ,तो अंतिम परिणाम में निरपेक्ष त्रुटि उन राशियों कि निरपेक्ष त्रुटियों के योग के बराबर होती है |” माना कि दो भौतिक राशियाँ   X व Y के मापित मान क्रमशः X ± Δ X, Y ± Δ Y है | जहाँ Δ X एवं Δ Y क्रमशःइन राशियों की निरपेक्ष त्रुटियाँ हैं | अतः संकलन Z = X + Y में त्रुटि Δ Z Z ± Δ Z = ( X ± Δ X) + (Y ± Δ Y) Z में अधिकतम संभावित   त्रुटि   Δ Z = Δ X + Δ Y व्यकलित करने पर Z = X – Y के लिए त्रुटि – Z ± Δ Z = ( X ± Δ X) - (Y ± Δ Y)                          = (X - Y) ± Δ X ± Δ Y अथवा         ± Δ Z = ± Δ X ± Δ Y ·        (b) गुणनफल या भागफल की त्रुटि –     इसका नियम यह है कि , “जब दो राशियों को गुणा या भाग किया जाता है तो प्राप्त परिणाम में आपेक्षिक त्रु

Error Analysis-In Physics-त्रुटि क्या है?

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  त्रुटि (Error) -   त्रुटि शब्द का अलग-अलग क्षेत्रो में अनेक तरीको से परिभाषित किया जा सकता है, जिससे इसके कई अर्थ हैं | लैटिन भाषा के शब्द एरर (error अर्थात त्रुटि ) का वास्तविक अर्थ किसी”भटकना” या “इधर उधर घूमना” है | चुकि समस्त प्रायोगिक विज्ञानं एवं प्रौद्योगिकी का मूल आधार मापन है | अतः यहाँ हम मापन के क्षेत्र   में त्रुटि का विश्लेषण करेंगे |   किसी भी मापन यंत्र के सभी मापन में कुछ न कुछ अनिश्चितता रहती ही है अर्थात् कोई भी माप पूर्णतया यथार्थ नहीं होती है ,चाहे वह कितना   ही ध्यानपूर्वक क्यों न लिया गया हो |यह     अनिश्चितता ही त्रुटि कहलाती है | त्रुटि सदैव प्रतिशत में व्यक्त किया जाता है | सांख्यिकी में , एक त्रुटि (या शेष) एक "ग़लती" नहीं है , बल्कि एक गणना , मापन , या अनुमान के द्वारा प्राप्त मान तथा स्वीकृत सत्य , निर्दिष्ट , या सैद्धांतिक रूप से सही मान के बीच का अंतर है | ·        यथार्थता एवं परिशुद्धता -   किसी भी माप की यथार्थता से यह ज्ञात होता है कि राशि के मापित मान और वास्तविक मान में कितना अंतर है जबकि परिशुद्धता से यह ज्ञात होता है कि राशि का

What is science?- Definitions,Branches

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 दोस्तों, आज हम विज्ञान के बारे में तथा उसके प्रमुख शाखाओ के बारें में विस्तृत अध्ययन करेंगे | हमें आशा है कि यह लेख आप सभी लोगो को पसंद आएगा ,तो चलिए शुरू करते हैं विज्ञान  से - विज्ञान (Science) -- परिभाषा --- विज्ञान शब्द का सन्धि - विच्छेद- वि +ज्ञान, जिसका अर्थ "विशेष ज्ञान" है| संस्कृत भाषा का शब्द 'विज्ञान' तथा अरबी भाषा का शब्द 'इल्म', जिसका तात्पर्य ज्ञान से है|विज्ञान को अंग्रेज़ी भाषा में साइंस (Science) कहते हैं जिसकी उत्पति लैटिन भाषा के "Scientia" शब्द से हुई है जिसका अर्थ "Knowledge" है|   "किसी भी विषय के सुव्यवस्थित ज्ञान को विज्ञान कहते हैं|"   या   "क्रमबद्ध एवं सुव्यवस्थित ढंग से उपार्जित ज्ञान को विज्ञान कहते हैं|" अल्बर्ट आइंस्टाइन के अनुसार- "संसार के विषय में सबसे अधिक अबोध्य तथ्य यह है कि यह बोधगम्य है|" बर्ट्रेण्ट रसैल के अनुसार   "हम अत्यन्त कम जानते फिर भी आश्चर्य है कि हम इतना अधिक जानते हैं तथा उससे भी अधिक आश्चर्य की बात है कि इतना (विज्ञान का) कम ज्ञान भी हमें इतनी अ

विमा किसे कहते है ,विमीय सूत्र

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                                                                                                                       vphysicsworld.blogspot.com विमा          "किसी भौतिक राशि की विमायें वे घातें होती हैं जिन्हें राशि को व्यक्त करने के लिए मूल राशियों पर लगाए जाते हैं |" विमा प्रदर्शित करने के लिए गुरु कोष्ठक ‘[ ]’ का प्रयोग किया जाता है | सभी भौतिक राशियों की विमाएं लम्बाई के लिए [L],द्रव्यमान के लिए [M],समय के लिए [T] तथा ताप के लिए [ө] के पदों में व्यक्त किया जाता है | विमीय सूत्र     "किसी भौतिक राशि का विमीय सूत्र वह व्यंजक है ,जो यह प्रदर्शित करता है कि किसी भौतिक राशि में किस मूल राशि की कितनी विमायें हैं |"                                                                   या   "किसी भैतिक व्युत्पन्न राशि का विमीय सूत्र वह व्यंजक है जिससे यह ज्ञात होता है कि उस व्युत्पन्न राशि में कौन -कौन सी मूल राशियाँ किस-किस प्रकार शामिल हैं |" उदाहरण -  क्षेत्रफल =लम्बाई X चौड़ाई | अतः क्षेत्रफल का विमीय सूत्र=[L][L]=[L]²=[L²]अथवा[M⁰L²T⁰]|इसी प्रकार अन्य राशिय

PHYSICAL MEASUREMENTS

भौतिक मापन(PHYSICAL MEASUREMENTS)           vphysicsworld.blogspot.com   मेरे प्रिय विद्यार्थियों , आज के इस पोस्ट में हम लोग उस जानकारी को प्राप्त करेंगे जो कि हमारे दैनिक जीवन में हमेशा ही प्रयोग किया जाता है | इस topic का नाम है  भौतिक मापन ( physical measurements) इसमें सभी मापन सम्बन्धित जानकारी उपलब्ध कराया जायेगा | इसका एक सरल उदहारण यह है कि  यदि हम आपसे यह कहे कि आप हमें एक लोहे के छड का टुकड़ा लाईये जो कि हमारे इस एक ऊँगली  के बराबर हो तो आप तुरंत ही पूछेंगे की सर कितना यह मतलब की आप हमें इसे नंबर में बताये क्योंकि हम तो आपकी ऊँगली लेकर तो जा नहीं सकते | ऐसे ही समस्याओं को दूर करने के लिए हम मापन करते हैं चाहे वह किसी भी भौतिक राशि का हो | मापन(MEASUREMENTS)=>   किसी भौतिक राशि का एक निश्चित, आधारभूत मान्यताप्राप्त ,सन्दर्भ -मानक मात्रक के साथ तुलना करना मापन कहलाता है | भौतिक राशि की माप को व्यक्त करने के लिए दो तथ्य आवश्यक होते हैं- 1.मात्रक-      जिसमें वह भौतिक राशि मापी जाती है                                          2. आंकिक मान-     जिससे यह ज्ञात होता है कि वह

Physics Branches

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प्रिय पाठकों ! आज का विषय बहुत ही रोमांचक और आनंदमयी होगा क्योंकि आज के इस पोस्ट में हम एक ऐसे विषय को सरल तरीके से पढ़ने की कोशिश करेंगे जो कि हमारे आस - पास लोगो के कहने से वह आपको कठिन लगता है | वह विषय विज्ञान के प्रभाग का ही हिस्सा है , जिसे भौतिक विज्ञान कहा जाता है | भौतिक विज्ञान के अध्ययन को सरल व सहज बनाने के लिए वैज्ञानिकों ने इसे विभिन्न शाखाओं में विभाजित किया गया है | आईये हम इसी के बारे में जानेंगे | भौतिक विज्ञान की शाखाएँ( Branches of Physical Science)   भौतिकी  को मुख्य रूप से दो भागो में विभाजित किया जा सकता है --- 1. चिरसम्मत भौतिकी(Classical Physics)    2. आधुनिक भौतिकी(Modern Physics)      1. चिरसम्मत भौतिकी (Classical Physics )-- 1900 ई० से  पूर्व जो भौतिक ज्ञान अर्जित किया गया था और तत्सम्बन्धी जो नियम तथा सिद्धांत प्रतिपादित किये गये थे ,उनका समावेश चिरसम्मत भौतिकी  में किया गया | उस समय के विचारधारा के प्रेरणाश्रोत  गैलीलियो (1534-1642ई०) तथा न्यूटन (1642-1727ई०) थे | इसकी प्रमुख उपशाखाएँ यांत्रिकी ,ध्वनिकी ,ऊष्मागतिकी ,विद्दुतचुम्बकत्व  और प्रकाशिकी है --   (A